सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में इलेक्टोरल बॉन्ड पर तत्काल कोई रोक नहीं लगाई है लेकिन सभी पार्टियों से अपने चुनावी फंड की पूरी जानकारी देने को कहा है.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि चुनावी बॉन्ड के मार्फ़त चंदा देने वालों की पूरी जानकारी, कितना चंदा मिला, हर बॉन्ड पर कितनी राशि प्राप्त हुई उसकी पूरी जानकारी चुनाव आयोग को उपलब्ध कराएं.
कोर्ट ने कहा है कि 15 मई तक मिले चंदे की सारी जानकारियां एक सीलबंद लिफ़ाफ़े में 30 मई तक चुनाव आयोग के पास जमा कराई जाएं.
सुप्रीम कोर्ट ने वित्त मंत्रालय को आदेश दिया कि वो अपने नोटिफ़िकेशन में संशोधन करे और इलेक्टोरल बॉन्ड की ख़रीद के लिए अप्रैल और मई में दिए गए पांच अतिरिक्त दिन को हटाए.
इस मामले में सुनवाई के दौरान पहले अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट से फिलहाल हस्तक्षेप न करने की अपील की थी.
उन्होंने दलील दी थी कि "अगर सरकार काले धन को रोकने के लिए कार्यवाही करे तो क्या कोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए? ये एक प्रयोग है और इसे कोर्ट से भी समर्थन मिलना चाहिए."
इससे पहले चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो इस तरह की फंडिंग के ख़िलाफ़ नहीं है पर चंदा देने वाले शख़्स की पहचान अज्ञात रहने के ख़िलाफ़ है.
हालांकि कोर्ट ने चुनाव आयोग के पिछले हलफ़नामे की याद दिलाई जिसमें इलेक्टोरल बॉड को पीछे ले जाने वाला कदम बताया गया था.
केंद्र सरकार का तर्क है कि वह चंदा देने वाले व्यक्ति की पहचान को लेकर गोपनीयता रखना चाहती है.
एक ट्विटर यूज़ कृष्ण प्रताप सिंह ने ट्वीट किया है, "बीजेपी को इलेक्टोरल बॉड का 90 प्रतिशत मिला है. मुझे लगता है कि बाकी कांग्रेस के खाते में गया है. अगर कांग्रेस इस चुनाव को जीतना चाहती है तो उसे चंदा देने वालों के नाम बताने चाहिए. बीजेपी को छिपने की कोई जगह नहीं मिलेगी."
एक अन्य ट्वीटर यूजर मेघनाद ने लिखा है, "इलेक्टोरल बॉड भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर एक ज़ोरदार तमाचा है."
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