Wednesday, January 30, 2019

बीजेपी को उल्टा तो नहीं पड़ेगा पूर्वोत्तर में 'हिंदुत्व एजेंडा'

साल 2016 की 24 मई का दिन. जगह असम के गुवाहाटी का खानापाड़ा मैदान. मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत उनके कैबिनेट के सभी शीर्ष मंत्री मौजूद थे. साथ ही मौजूद थे बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह.

पूर्वोत्तर राज्यों में किसी भी सभा में एक साथ बीजेपी के इतने नेता कभी शामिल नहीं हुए. बीजेपी और उनके सहयोगी पार्टी के 14 मुख्यमंत्री भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे. दरअसल ये कार्यक्रम असम में पहली बार सत्ता में आई बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का शपथ ग्रहण समारोह था.

बीजेपी ने अपने एक मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण कार्यक्रम को इतने बड़े समारोह का रूप देकर कर एक तरह से पूर्वोत्तर राज्यों में सालों से राज कर रही कांग्रेस को साफ संदेश दे दिया था कि अब इस क्षेत्र में उसको कोई नहीं रोक सकता. ऐसा हुआ भी. पूर्वोत्तर में कांग्रेस के हाथ से एक के बाद एक सभी राज्य निकलते चले गए और अब वो यहां के किसी भी राज्य में नहीं है.

इसकी एक बड़ी वजह थी नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायन्स यानी नेडा का गठन. मुख्यमंत्री सोनोवाल के शपथ ग्रहण के एक दिन बाद अमित शाह की अध्यक्षता में नेडा का गठन हुआ जिसमें पूर्वोत्तर राज्यों की सभी गैर कांग्रेसी पार्टियां शामिल हो गई. उस दिन तक सबकुछ बीजेपी जैसे चाह रही थी ठीक वैसा ही हो रहा था.

क्योंकि महज़ पांच सीटों वाली बीजेपी ने असम की 126 विधानसभा सीटों में से 61 सीटे जीती थी. अमित शाह का नेडा बनाने का मूल मसकद था पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से कांग्रेस का सफाया करना.

दरअसल देश के इस हिस्से में ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने असम और पूर्वोत्तर के लोगों से शुरूआत में केवल विकास की बात की थी. उन्होंने मुख्यमंत्री सोनोवाल के शपथ ग्रहण मंच से भी यही कहा था कि असम सरकार राज्य के विकास के लिए जितना दौड़ेगी, दिल्ली की केंद्र सरकार भी यहां के विकास के लिए उससे एक कदम ज्यादा प्रयास करेगी.

ये वही नरेंद्र मोदी है जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले पश्चिम बंगाल में एक चुनावी सभा में साफ शब्दों में कहा था कि वो जिस दिन केंद्र की सत्ता संभालेंगे उस दिन बांग्लादेशी घुसपैठियों को अपना बोरिया-बिस्तार बांधना पड़ेगा.

राजनीति के जानकार आज भी कहते है कि उनके भाषण का असम के लोगों पर काफी असर पड़ा और 2016 में बीजेपी की इतनी बड़ी जीत कहीं न कहीं मोदी पर लोगों का भरोसा जताना भी था.

लेकिन जानकार बताते हैं कि असम में सरकार बनने के महज़ ढाई साल के भीतर यानी 2019 आते आते माहौल ऐसा बन गया है कि अब वही लोग बीजेपी नेताओं को काला झंडा दिखाने लगे हैं और इसका एक बड़ा कारण बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा है जो खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में काम नहीं कर रहा है.

मेघालय से प्रकाशित होने वाले अख़बार द शिलॉंग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखीम ने बीबीसी से कहा,"पूर्वोत्तर के खासकर कबाइली प्रदेशों में बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा चलने वाला नहीं है. अगर आने वाले चुनाव में पार्टी को थोड़े बहुत वोट मिलते हैं तो असम में ही उसका मौक़ा बचा है."

हालाँकि वो कहती हैं कि असम में भी बीजेपी का प्रदर्शन पहले के मुकाबले अच्छा नहीं रहेगा क्योंकि नागरिकता संशोधन बिल को लेकर सभी लोग काफी नाराज़ है.

मुखीम कहती है, "असम में 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 15 साल से सत्ता में थी तो उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी. इसके अलावा लोग परिवर्तन चाह रहे थे. तो लोगों ने अपने वोट बीजेपी को दे दिए. लेकिन आज वो स्थिति नहीं रही.लोग इस बिल को लेकर बेहद खफा है. "

वो बताती हैं कि मेघालय में भी पार्टी को मुश्किल होगी.

उन्होंने कहा," पिछली बार मेघालय विधानसभा में बीजेपी को जो दो उम्मीवार थे वे इतनी मज़बूत थे कि किसी भी पार्टी से खड़े होते तो चुनाव जीत जाते.दरअसल मेघालय में लोग पार्टी को नहीं व्यक्ति को वोट देते हैं."

हालांकि बीजेपी नेता इस तरह के विरोध के बाद भी ये स्वीकार करने को तैयार नहीं कि आने वाले समय में पार्टी को कोई नुकसान उठाना पड़ेगा.

असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय गुप्ता कहते है, "अगर कोई ये कह रहा है कि भारतीय जनता पार्टी विकास के मुद्दे से हट गई है तो ये पूरी तरह गलत है. हम अगर असम की बात करें तो यहां चार नए पुलों का उद्घाटन हुआ है और चार नए पुलों का निर्माण होगा. वहीं पूर्वोत्तर की कनेक्टिविटी की बात है तो जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं थी तो केवल 12 फ्लाइट आया करती थी लेकिन आज 256 फ्लाइट यहां आती है. हमने सड़क और रेल कनेक्टिविटी में भी काफी काम किया है. आज त्रिपुरा और मिजोरम जैसे राज्य रेल से जुड़ गए है."

जब बीजेपी की सरकार ने इस क्षेत्र के लिए इतना कुछ किया है तो फिर विरोध क्यों हो रहा है. सहयोगी पार्टियां साथ क्यों छोड़ रही है? इस सवाल का जवाब देते हुए भाजपा नेता कहते है," अगर किसी एक मुद्दे पर सहयोगी दल के कुछ लोग हमसे सहमत नहीं है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वे नेडा का हिस्सा नहीं है. इससे नेडा की एकता पर कोई सवाल नहीं है."

भाजपा नेता साथ ही स्वीकार करते हैं कि अगर उनकी पार्टी एक मुद्दे (नागरिकता संशोधन बिल) को छोड़ दे तो नेडा के सभी साथी उनके साथ फिर आ जाएंगे.

वो कहते है," कुछ लोग इस मुद्दे की गलत व्याख्या करने में लगे हुए है. हमने 2014 तक की समय सीमा रखी है, इसके बाद आने वाले किसी भी व्यक्ति को नागरिकता नहीं दी जाएगी. इस बिल में पहले कई संशोधन हुए है और हमारी सरकार यहां के लोगों की सुरक्षा के लिए ही ये संशोधन कर रही है."

Tuesday, January 22, 2019

देश के सभी मदरसे बंद हों, नहीं तो आधे से ज़्यादा मुसलमान चरमपंथी बन जाएंगे'

उत्तर प्रदेश शिया वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर प्राथमिक स्तर तक के सभी मदरसों को बंद करने का सुझाव दिया है.

उन्होंने अपने पत्र में दावा किया है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो 15 साल के बाद देश के आधे से ज़्यादा मुसलमान चरमपंथी संगठन आईएस की विचारधारा के समर्थक हो जाएंगे.

उन्होंने कहा है कि मदरसों में इस्लामी शिक्षा के नाम पर बच्चों को दूसरे धर्मों से अलग किया जा रहा है. ऐसे में बच्चों और देश के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें कक्षा दसवीं तक सामान्य शिक्षा दी जाए.

ईवीएम हैक का दावा करने वाले के ख़िलाफ़ मामला दर्ज
भारत के निवार्चन आयोग ने ईवीएम हैक करने का दावा करने वाले कथित साइबर जासूस सैय्यद शुजा के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है.

आयोग ने उन पर अफ़वाह फैलाने के आरोप में आईपीसी की धारा 505 के तहत दिल्ली पुलिस के एफ़आईआर दर्ज करने को कहा है.

ईवीएम बनाने वाली कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने भी शुजा के उन दावों का खंडन किया जिसमें उन्होंने कहा था कि वो ईवीएम डिज़ाइनिंग करने वाली कंपनी का हिस्सा थे.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आज से दो दिन के दौरे पर अमेठी जाएंगे.

राहुल गांधी अमेठी में ग्राम पंचायतों का दौरा करेंगे. राहुल एक नुक्कड़ सभा भी करेंगे.

राहुल को चार जनवरी को अमेठी जाना था लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र के चलते वो दौरा रद्द करना पड़ा था.

राहुल के साथ रायबरेली के दौरे पर सोनिया गांधी को भी जाना था. लेकिन माना जा रहा है कि सोनिया का रायबरेली दौरा टल सकता है. हालांकि इसको लेकर आधिकारिक जानकारी नहीं है.

ऑस्ट्रेलिया में जीत का झंडा बुलंद करने के बाद आज टीम इंडिया न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ मैदान में उतरेगी.

दोनों देशों के बीच पांच वनडे क्रिकेट मैचों की सिरीज़ बुधवार से शुरू होने जा रही है.

इस सिरीज़ का पहला मैच नेपियर में खेला जाएगा.

न्यूज़ीलैंड का दौरा भारतीय क्रिकेट टीम के लिए हमेशा बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. इससे पहले भारत ने साल 2013-14 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में न्यूज़ीलैंड का दौरा किया था.

तब ब्रैंडन मैकुलम की कप्तानी में न्यूज़ीलैंड ने पांच वनडे क्रिकेट मैचों की सिरीज़ में भारत को 4-0 से हराया था.

अमरीकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को ट्रांसजेंडर्स को सेना में जाने से रोकने की नीति लागू करने की हरी झंडी दे दी है.

अमरीका के शीर्ष कोर्ट ने ट्रंप ने प्रशासन के इस फ़ैसले को 4 के मुकाबले 5 मतों से मंज़ूर किया. इस नीति के तहत ट्रांसजेंडर लोगों को सेना में आने से रोका जाएगा.

प्रशासन का कहना है कि ट्रांसजेंडर्स को नियुक्त करने से सेना के प्रभाव और क्षमता पर बड़ा जोखिम पैदा हो सकता है. एलजीबीटी समुदाय ने इस बैन को क्रूर और अतार्किक बताया है.

Thursday, January 10, 2019

10 फ़ीसदी आरक्षण का उस तरह विरोध नहीं होगा: इंदिरा साहनी

सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन का विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया है.

इससे आरक्षण की अधिकतम 50 फ़ीसदी सीमा के बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाने का रास्ता आसान हो गया है.

1992 में सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फ़ीसदी तय कर दी थी.

इंदिरा साहनी को अब लगता है कि आरक्षण विधेयक का इस बार उस तरह विरोध नहीं होगा जैसा कि 1992 में हुआ था.

हालांकि वो इसे संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ मानती हैं और चाहती हैं कि आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी से अधिक न बढ़ें क्योंकि इससे मेरिट वालों को नुक़सान होगा.

अपने याचिका दायर करने के फ़ैसले को याद करते हुए इंदिरा साहनी कहती हैं, "उस समय मैंने दिल्ली में झंडेवालान के पास एक रैली देखी थी. इसमें छात्र और अन्य युवा विरोध कर रहे थे. इसी से प्रभावित होकर मैंने मंडल आयोग का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी. इसी पर फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फ़ीसदी तय कर दी थी."

अब सरकार के आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत अधिक आरक्षण देने के फ़ैसले पर इंदिरा साहनी कहती हैं, "अब आर्धिक आधार पर दिया जा रहा ये दस प्रतिशत आरक्षण ग़लत है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं और आर्थिक आधार पर जो आरक्षण दिया जा रहा है इसमें भारत की अधिकतर आबादी आ जाएगी इससे जो लोग इसके बाहर रह जाएंगे ये उनके बराबरी के अधिकार का हनन होगा."

वो कहती हैं, "यही नहीं ये खुली प्रतियोगिता में मेरिट के आधार पर चयन के अधिकार का भी उल्लंघन होगा. ऐसे में मुझे लगता है कि ये संविधान की मूल भावना के ही ख़िलाफ़ होगा."

इंदिरा साहनी कहती हैं कि जब उन्होंने 1992 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका जिन कारणों से की थी वो अब भी बरक़रार हैं.

वो कहती हैं, "उस समय भी आरक्षण 50 फ़ीसदी की सीमा को पार कर रहा था और इसी का विरोध करने के लिए हमने याचिका दायर की थी. अब फिर से ऐसा हो रहा है. ये बराबरी के अधिकार के ख़िलाफ़ है."

इंदिरा कहती हैं, "जो हो रहा है वो होना नहीं चाहिए. ये ग़लत है और कोई ना कोई इसे भी चुनौती देगा."

हालांकि उन्होंने अभी तक इसे अदालत में चुनौती देने का मन नहीं बनाया है. इस सवाल पर वो कहती हैं, "मैं इस बार इसे चुनौती देने नहीं जा रही हूं. मैंने इस बारे में सोचा नहीं है, अभी पूरी तरह से पता भी नहीं है कि सरकार करने क्या जा रही है. जब स्पष्ट जानकारी होगी और अगर ज़रूरी लगा तो मैं इसे चुनौती दे भी सकती हूं."

इंदिरा कहती हैं, "जब मैंने याचिका दायर की थी तब आरक्षण की व्यवस्था का बेहद कड़ा विरोध हो रहा था. लोग मर रहे थे. लेकिन अब ऐसा नहीं लगता कि जनता कि ओर से इसका तीव्र विरोध होगा. क्योंकि आरक्षण के दायरे से बाहर रहने वाले लोगों की संख्या बहुत कम रह जाएगी."

Friday, January 4, 2019

नैन्सी पेलोसी: अमरीका की सबसे ताक़तवर महिला

अमरीका के कैलिफ़ोर्निया से डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद नैन्सी पेलोसी अमरीका की प्रतिनिधि सभा की स्पीकर चुनी गई हैं.

इस पद पर पहुंचने के साथ ही वो अमरीका की सबसे ताक़तवर महिला बन गई हैं, वहीं राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के बाद अमरीका की तीसरी सबसे ताक़तवर शख़्सियत भी बन गई हैं.

अमरीका में हाल में हुए मध्यावधि चुनाव के बाद निचले सदन यानी कि हाउस ऑफ़ रिप्रज़ेंटेटिव में डेमोक्रेटिक पार्टी बहुमत में आ गई है. पेलोसी की जीत ऐसे वक़्त में हुई है जब राष्ट्रपति ट्रंप के मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने को लेकर फ़ंड की मांग पर अमरीका में लगभग शटडाउन की स्थिति है. 78 वर्षीय पेलोसी ट्रंप के दीवार बनाने की योजना के ख़िलाफ़ हैं.

अपने चुनाव पर उन्होंने कहा, ''मुझे गर्व है कि मैं संसद के इस सदन की स्पीकर बनाई गई हूं. ये साल अमरीका में महिलओं को मिले वोट के अधिकार का 100वां साल है. सदन में 100 से ज़्यादा महिला सांसद हैं जिनमें देश की सेवा करने की क़ाबिलियत है. ये संख्या अमरीकी लोकतंत्र के इतिहास में सबसे ज़्यादा है.''

नैन्सी पेलोसी अब न सिर्फ़ स्पीकर हैं बल्कि अमरीकी संसद में विपक्ष का नेतृत्व भी करेंगी. अमरीका की राजनीति में उनका सफ़र असाधारण रहा है. साल 2007 में वो कुछ वक़्त के लिए स्पीकर रही थीं.

इसके साथ ही वो साल 2018 के मध्यावधि चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की रणनीतिकार भी रहीं.

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लेडी चैटर्ली की कहानी जिसके करोड़ों दीवाने रहे
पेलोसी हमेशा से रिपब्लिकन पार्टी के निशाने पर रहीं हैं. उन पर बेहतर स्पीकर ना होने के आरोप लगते रहे.

नैन्सी पेलोसी का बचपन पूर्वी अमरीका के मैरीलैंड राज्य के बाल्टिमोर शहर में बीता. उनके पिता इस शहर के मेयर रहे. सात भाई बहनों में सबसे छोटी पेलोसी अपने माता-पिता की अकेली बेटी है.

साल 1976 में अपने परिवार के राजनीतिक संबंधों का लाभ उठाते हुए पेलोसी ने राजनीति में क़दम रखा. उन्होंने डेमोक्रेट नेता और कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर जैरी ब्राउन की चुनाव में मदद की.

साल 1988 में उन्हें पार्टी का उप प्रमुख चुना गया. इस दौरान उन्होंने एड्स बीमारी पर शोध के लिए धन मुहैया कराने को प्राथमिकता दी. साल 2001 में नैन्सी पेलोसी को निचले सदन में संसदीय समूह का नेता नियुक्त किया गया.

स्पीकर बनने के मायने

अमरीकी संविधान में इस पद की व्याख्या चैंबर के नेता के तौर पर की गई है. इसके मुताबिक ज़रुरत होने पर उप राष्ट्रपति के बाद स्पीकर राष्ट्रपति की जगह ले सकते हैं.

हाउस ऑफ़ रिप्रज़ेंटेटिव में बहुमत रखने वाली पार्टी का विधायी एजेंडे पर नियंत्रण होता है. ये पार्टी बहस के नियम भी तय करती है.